दरकार!!

दरकार 
क्यों अनजान राही  फिर मिलते नहीं ,
न जाने उनके रास्ते कौन सी राह चुन लेते हैं ।

कुछ अनजाने से अनजाने में दिल को छू जाते हैं ,
न जाने क्यों फिर मिलने की आस छोड़ जाते हैं ।

अब दरकार सिर्फ तेरी एक झलक की है ,
न जाने क्यों फिर मिलने की लकीरें बन जाती है ।

यह लकीरें ही फिर एक नई राह बनाती हैं,
जो अलग-अलग राहों को,
 अलग-अलग राहगीरों को आपस में मिलती है ।

रास्ते तो अब एक हो गए हैं ,
साथ रहा तो मंजिलों तक भी चले जाएंगे।

 न जाने क्यों यह साथ दिल की धड़कनों सा चलने लगा है 
 जो ना थमने की दरकार कर रहा है।।

सुप्रिया सोनी।।

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