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Showing posts from August, 2023

राखी।।

राखी क्या है राखी।। भाई और बहन का त्यौहार है राखी।। भाई और बहन का प्यार है राखी ।। रेशम के धागों का मजबूत बंधन है राखी।। सावन के महीने की पावन रौनक है राखी।। रेशम की डोरी में बंधा भाई बहन का रिश्ता है राखी।। कुमकुम का यूं तिलक लगाते बहन के वो हाथ हैं राखी।। प्यारी प्यारी नोक झोंक के बाद भाई बहन का आपस में जुड़ाव है राखी ।। आज के दिन बहन करती भाई का श्रृंगार है राखी।। रेशम की डोरी से बंधे हाथ से दिया भाई का आशीर्वाद है राखी।। सुप्रिया सोनी।।

तेरे हाथों के दरमियान......

तेरे हाथों के दरमियां उस नरमी को थामे हुए कुछ ही पल हुए थे,  कि मानो सारी जिंदगी ही जी ली हो मैंने।। देर से तो मिले थे लेकिन दूर तक चले थे वह सफर मुझे आज भी याद है।। कि वह सफर मुझे आज भी याद है ।। जमाने भर ने देखा था, तुमने हाथ थामा था , जो बार-बार आए ऐसी याद हो तुम ।। बेकदर सी जिंदगी को कदर दी तुमने , आज भी इस खिले चेहरे की मुस्कान हो तुम।। जिंदगी के कुछ पन्ने पलटने अभी बाकी थे , कि जिंदगी के कुछ पन्ने पलटने अभी बाकी थे , कुछ पन्नों पर तुम्हारी स्याही के निशान अभी बाकी थे।। तुम्हारे साथ का साथ एक मंज़र बन गया , कि तुम्हारे साथ का साथ एक मंजर बन गया,  वो मेरी धड़कनों सी चलती पूरी कायनात हो तुम ।। यूं तो यह अनकही सी कहानियां अपनी शाम ढूंढते ढूंढते थक गई , किसे पता था की ये अपना गान उन खामोशियों में करती गई।। की किसे पता था की ये अपना गान उन खामोशियों में करती गई।। सुप्रिया सोनी।।

ख्याल।।

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क्या कहूं उन लम्हों को जिनको एक बार नहीं सौ बार जिया है मैंने।।  एक सुकून सा मिलता है जब साथ तेरा होता है ।। उस एक-एक पल को संजो के रखना चाहती हूं जो तेरे साथ बीतता है ।। फूलों की खुशबू सा यह साथ न जाने कब तक महकेगा।। हर रोज उसे उसी ताजगी के साथ खींचना चाहती हूं ।। दिल के अरमानों की चाबी ने लम्हों को अपना बना लिया है अब यह लमहे और अरमान तो अपने से मिल गए कमबख्त उस चाबी का पता नहीं ।। क्यों आज यह शाम फिर से महकने लगी ।। क्यों यह अरमान फिर से जागने लगे ।। आज यह नैन सारी बातें कहने लगे ।। इस चांद की रोशनी में आज सब फिर से जी लिया।।  अब आदत सी हो गई है उस खुशबू की जिसकी महक के बिना अब सवेरा नहीं होता ।। दिल जानता है उस खामोशी को भी जिसके दरमियां अब सब कुछ नया नया सा है फिर भी उसकी आहट का एहसास लिए हुए हैं सुप्रिया सोनी।।

आज़ादी

आज़ादी यानी स्वावलंबन मन का वह करना जो वो करना चाहता है आज़ादी है। किसी भी पक्षी का पिंजरे के बाहर पंख फैलाए उड़ना आजादी है।  इन तारों का उस चांद के साथ जगमग-जगमग चमकना आजादी है।  उन फूलों का नए आसमान में पंख फैलाए यूं खिल जाना आजादी है । इन आंखों का दिल खोलकर प्रकृति को यूं निहारना आजादी है।  चिड़िया का एक-एक तिनका उठाकर एक नन्हा सा घर बनाना आजादी है । एक नन्हे बच्चे को जन्म देना एक मां की आजादी है । उस नदी के पानी का अपनी चाह  के अनुसार बहन आजादी है। उस चंदा को एक टक देखना आजादी है। उगते हुए सूर्य का अपनी किरणों को यूं फैलाना आजादी है।  आजादी मन की एक स्थिति है। सुप्रिया सोनी।।

दरकार!!

दरकार  क्यों अनजान राही  फिर मिलते नहीं , न जाने उनके रास्ते कौन सी राह चुन लेते हैं । कुछ अनजाने से अनजाने में दिल को छू जाते हैं , न जाने क्यों फिर मिलने की आस छोड़ जाते हैं । अब दरकार सिर्फ तेरी एक झलक की है , न जाने क्यों फिर मिलने की लकीरें बन जाती है । यह लकीरें ही फिर एक नई राह बनाती हैं, जो अलग-अलग राहों को,  अलग-अलग राहगीरों को आपस में मिलती है । रास्ते तो अब एक हो गए हैं , साथ रहा तो मंजिलों तक भी चले जाएंगे।  न जाने क्यों यह साथ दिल की धड़कनों सा चलने लगा है   जो ना थमने की दरकार कर रहा है।। सुप्रिया सोनी।।

बारिश और गरबा।।

अहमदाबाद की बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं दरवाजे पर खड़ी बारिश का मजा ले रही थी कि इतने में भाभी ने आवाज दी सुप्रिया चलो खाना खाने। मैंने अपने आप को उन ख्यालों से बाहर निकाला जिनमें मैं एक पल के लिए खो गई थी और बारिश का सहारा लिए बस चलती जा रही थी।  भाभी से कहा हां जी भाभी बस आ रही हूं ।कमरे की लाइट और ऐ सी बंद किया और मोबाइल लिए नीचे चली गई। भाभी दीदी और आंटी सब बैठे मेरी खाने पर राह देख रहे थे । मुझे देखकर उनकी आंखों में एक चमक सी आ गई ।वह सभी मुझे बहुत ही मानते थे। तभी भाभी ने कहा चलो जल्दी खाना खा लो फिर गरबा क्लास में जाना है मैंने भी बारिश की तेजी को देखते हुए उनसे  बारिश न रुकने की शर्त लगा ली थी और क्या होना था हमेशा की तरह मैं जीत गई।  उस रात न तो बारिश रुकी और न हम गरबा क्लास गए ।लेकिन हम अपने ही स्टाइल से गरबा करते हुए खूब मजे करने लगे कुछ स्टेप सर के थे तो कुछ हमने अपने आप बना लिए थे। वह छोटा बच्चा वीर जो सिर्फ 3 साल का है वह भी हमारे साथ गरबा का स्टेप करने लगा मानो वही हमें सिखा रहा हो।  मैंने उसकी वीडियो ली और हमने खूब मजे किए इस दौरान जब सब बैठे थे हमारे साथ ड

अनजान राही।

ट्रेन में जैसे ही मैं अपनी सीट पर बैठी अचानक मेरी नजर उस पर गई। और मानो थम सी गई। फिर जैसे ही उसने मुझे देखा मैं अपने मोबाइल में देखने लगी जैसे मैंने उसे देखा ही नहीं । दिखने में गुड लुकिंग बोलने में बहुत ही सहज और खाना खाने के तरीके में एकदम एक्सपर्ट यह सारी चीज कुछ ही देर में मैं ऑब्जर्व कर ली थी फिर क्या था स्टेशन पर ट्रेन रुकी और वह नीचे उतरा कुछ लेने के लिए मुझे भी उसने पूछा कि आपको कुछ चाहिए और मैं अचानक ख्यालों से बाहर आई और पहले तो एकटक उसे देखने लगी और फिर कहा हां हाइड एंड सीक बिस्किट हाइड एंड सीक बिस्किट का एक पैकेट प्लीज । वह जैसे ही समान लेकर आने लगा ट्रेन चल दी थी मैंने उसे हाथ दिया पकड़ने के लिए और वह ट्रेन में आ गया मानो एक जीत हासिल कर ली हो हम दोनों ने ही। उसका बोलने का तरीका मुझे बहुत पसंद आया और दिखने में वह किसी अच्छे घर का लग रहा था। मैं उससे और भी बात करना चाहती थी उसका नाम पूछना चाहती थी पर उसका स्टेशन आ गया था और वह जाने लगा ।पीछे मुड़कर उसने मुझे नहीं देखा और मैंने भी बिना नाम जाने उसे जाने दिया।  कई बार जिंदगी में कई ऐसे मोड़ आते हैं जहां अनजान रही कोई आकर अपन