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तिरुपति ऋषिवन : एक यात्रा वृत्तांत

< p>                       तिरुपति ऋषिवन कल का दिन बहुत ही अच्छा रहा ! तिरुपति ऋषिवन जो कि एक जंगल जैसा पिकनिक स्पॉट है मैं वहां गई। जिनके यहां मैं पेइंग गेस्ट के रूप मे रहती हूं उन भईया-भाभी , दीदी-जीजाजी और बच्चों के साथ मैं वहां गई।सिर्फ कहने के लिए पेइंग गेस्ट "हां" क्यूंकि इन्होंने तो हमेशा अपना बनाकर ही रखा है।              वो कहते है ना दिल बड़ा होना चहिए बातें तो सभी बड़ी बड़ी करते हैं.......बस ऐसा ही है यह परिवार जो इतने अपनेपन से रखता है की उसे बयां करने के लिए शायद मेरे शब्द कम पड़ जाएंगे।अब वहां जाकर हमने रॉप क्लाइंबिंग, रॉप वॉकिंग जैसी कई एक्टिविटी की ओर खूब झूले झूले और अच्छी-अच्छी चीज खाई। मज़ा ज्यादा इसलिए नहीं आया की वहां ये सब चीजें थीं बल्कि इसलिए आया क्यूंकि सब साथ थे और ये सिर्फ कहने की ही बात नहीं है बात में दम इसलिए है क्यूंकि सब साथ हों तो खाली मैदान में भी हरियाली दिखाई देने लगती है।है ना सो आने सच बात।।         घर आने से पहले शाम को मंदिर भी गए जो की मेरे मन को सुकून देने वाला था।हर कोई अलग-अलग चीज़ों में अलग-अलग परिस्थितियों में सुकून ढूंढता ह

ज़िंदादिली

                    ज़िंदादिली वो रेत के ढ़ेर जो हवा के साथ चल रहे हैं उनमें है। पेड़ से लिपटी पत्तियां जो नाच रही हैं उनमें है। लालिमा को गले लगाए उस आसमां में है। वो हवाएं जो नमी लिए हुए हैं उनमें है। यारों की यारी में झलक रही मस्ती में है। अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से निभाने में है। अपने हुनर से ज़िंदगी को लाजवाब बनने में है। स्कूल के बच्चों की खिलखिलाहट में है। पतझड़ के बाद पेड़ पर आई नई पत्तियों में, उन नए लगे फूलों की खुशबू में है और उन फलों में है। उन फलों के छुपछुपकर तोड़कर खाने की धुन में है। अपनी चाहत को पाने के उस इंतज़ार के उस खुमार में है। किसी के लिए दुआ बनने में है, तो किसी के लिए जीवन जीने का कारण बनने में है। सुप्रिया सोनी।